
भारत का संविधान
डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर जी भारतीय संविधान के जनक हैं।
भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है |जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।[6] भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतान्त्रिक देश का सबसे लम्बा लिखित संविधान है।[7] डॉ॰भीमराव अम्बेडकर जी .
भारत का संविधान
अनुक्रम
संविधान सभा
भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में निर्वाचन हुए थे। संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्बर 1946 को हुई थी। इसके तत्काल बाद देश दो भागों - भारत और पाकिस्तान में बँट गया था। संविधान सभा भी दो हिस्सो में बँट गई - भारत की संविधान सभा और पाकिस्तान की संविधान सभा।
भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में 299 सदस्य थे जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर 1949 में अपना काम पूरा कर लिया और 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ। इसी दिन कि याद में भारत में हर वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।
संक्षिप्त परिचय
भारतीय संविधान में वर्तमान समय में भी केवल 470 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार, केन्द्रीय संसद की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन है जिन्हें राज्यों की पर प्रधानमन्त्री होगा, राष्ट्रपति इस मन्त्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद में निहित है जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री है जो वर्तमान में नरेन्द्र मोदी हैं।[8] मन्त्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोक सभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक,आन्ध्रप्रदेश और तेलंगाना में एक ऊपरी सदन है जिसे विधानपरिषद कहा जाता है। राज्यपाल राज्य का प्रमुख है। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा तथा राज्य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मन्त्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री है, राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्पादन में सलाह देती है। राज्य की मन्त्रिपरिषद से राज्य की विधान सभा के प्रति उत्तरदायी है।
संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। तथा इसी अनुसूची में सरकारों द्वारा शुल्क एवं कर लगाने के अधिकारों का उल्लेख है। इसके अंतर्गत तीन सूचियां हैं। संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। अवशिष्ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है।
भारतीय संविधान के भाग
भारतीय संविधान 22 भागों में विभजित है तथा इसमे 395 अनुच्छेद एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।
भागविषयअनुच्छेदभाग 1संघ और उसके क्षेत्र(अनुच्छेद 1-4)भाग 2नागरिकता(अनुच्छेद 5-11)भाग 3मूलभूत अधिकार(अनुच्छेद 12 - 35)भाग 4राज्य के नीति निदेशक तत्त्व(अनुच्छेद 36 - 51)भाग 4Aमूल कर्तव्य(अनुच्छेद 51A)भाग 5संघ(अनुच्छेद 52-151)भाग 6राज्य(अनुच्छेद 152 -237)भाग 7संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा निरसित(अनु़चछेद 238)भाग 8संघ राज्य क्षेत्र(अनुच्छेद 239-242)भाग 9पंचायत(अनुच्छेद 243- 243O)भाग 9Aनगरपालिकाएँ(अनुच्छेद 243P - 243ZG)भाग 10अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र(अनुच्छेद 244 - 244A)भाग 11संघ और राज्यों के बीच सम्बन्ध(अनुच्छेद 245 - 263)भाग 12वित्त, सम्पत्ति, संविदाएँ और वाद(अनुच्छेद 264 -300A)भाग 13भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम(अनुच्छेद 301 - 307)भाग 14संघ और राज्यों के अधीन सेवाएँ(अनुच्छेद 308 -323)भाग 14Aअधिकरण(अनुच्छेद 323A - 323B)भाग 15निर्वाचन(अनुच्छेद 324 -329A)भाग 16कुछ वर्गों के लिए विशेष उपबन्ध सम्बन्ध(अनुच्छेद 330- 342)भाग 17राजभाषा(अनुच्छेद 343- 351)भाग 18आपात उपबन्ध(अनुच्छेद 352 - 360)भाग 19प्रकीर्ण(अनुच्छेद 361 -367)भाग 20संविधान के संशोधनअनुच्छेद - 368भाग 21अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध(अनुच्छेद 369 - 392)भाग 22संक्षिप्त नाम, प्रारम्भ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ और निरसन(अनुच्छेद 393 - 395)
इतिहास
मुख्य लेख: भारतीय संविधान का इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें 3 मंत्री थे। १५ अगस्त १९४७ को भारत के स्वतन्त्र हो जाने के पश्चात संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य ९ दिसम्बर १९४७ से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने २ वर्ष, ११ माह, १८ दिन में कुल ११४ दिन चर्चा की। संविधान सभा में कुल १२ अधिवेशन किए तथा अंतिम दिन २८४ सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किया और संविधान बनने में १६६ दिन बैठक की गई इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,26 नवम्बर 1949 को सविधान सभा ने पारित किया और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।इस सविधान में सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का है। इस में लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं।
भारतीय संविधान की संरचना
यह वर्तमान समय में भारतीय संविधान के निम्नलिखित भाग हैं-[9]
(अब तक 127 संविधान संशोधन विधेयक संसद में लाये गये हैं जिनमें से 105 संविधान संशोधन विधेयक पारित होकर संविधान संशोधन अधिनियम का रूप ले चुके हैं। 124वां संविधान संशोधन विधेयक 9 जनवरी 2019 को संसद में #अनुच्छेद_368 【संवैधानिक संशोधन】के विशेष बहुमत से पास हुआ, जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को शैक्षणिक संस्थाओं म 8 अगस्त 2016 को संसद ने वस्तु और सेवा कर (GST) पारित कर 101वाँ संविधान संशोधन किया।)
अनुसूचियाँ
भारत के मूल संविधान में मूलतः आठ अनुसूचियाँ थीं परन्तु वर्तमान में भारतीय संविधान में बारह अनुसूचियाँ हैं। संविधान में नौवीं अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन 1951, 10वीं अनुसूची 52वें संविधान संशोधन 1985, 11वीं अनुसूची 73वें संविधान संशोधन 1992 एवं बाहरवीं अनुसूची 74वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा सम्मिलित किया गया।
पहली अनुसूची - (अनुच्छेद 1 तथा 4) - राज्य तथा संघ राज्य क्षेत्र का वर्णन।
दूसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 59(3), 65(3), 75(6),97, 125,148(3), 158(3),164(5),186 तथा 221] - मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते [10]
भाग-क : राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते,
भाग-ख : लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, राज्यसभा तथा विधान परिषद् के सभापति तथा उपसभापति के वेतन-भत्ते,
भाग-ग : उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन-भत्ते,
भाग-घ : भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के वेतन-भत्ते।
तीसरी अनुसूची - [अनुच्छेद 75(4),99, 124(6),148(2), 164(3),188 और 219] - विधायिका के सदस्य, मंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ लिए जानेवाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिए हैं।
चौथी अनुसूची - [अनुच्छेद 4(1),80(2)] - राज्यसभा में स्थानों का आबंटन राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से।
पाँचवी अनुसूची - [अनुच्छेद 244(1)] - अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित उपबंध।
छठी अनुसूची- [अनुच्छेद 244(2), 275(1)] - असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबंध।
सातवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 246] - विषयों के वितरण से संबंधित सूची-1 संघ सूची, सूची-2 राज्य सूची, सूची-3 समवर्ती सूची।
आठवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 344(1), 351] - भाषाएँ - 22 भाषाओं का उल्लेख।
नवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 31 ख ] - कुछ भूमि सुधार संबंधी अधिनियमों का विधिमान्य करण।पहला संविधान संशोधन (1951) द्वारा जोड़ी गई ।
दसवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 102(2), 191(2)] - दल परिवर्तन संबंधी उपबंध तथा परिवर्तन के आधार पर 52वें संविधान संशोधन (1985) द्वारा जोड़ी गई ।
ग्यारहवीं अनुसूची - [अनुच्छेद 243 छ ] - पंचायती राज/ जिला पंचायत से सम्बन्धित यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1992) द्वारा जोड़ी गई।
बारहवीं अनुसूची - इसमे नगरपालिका का वर्णन किया गया हैं ; यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) द्वारा जोड़ी गई।
आधारभूत विशेषताएँ
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है। अमेरीकी विद्वान इस को 'छद्म-संघात्मक-संविधान' कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता। संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है।
भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभतासम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य है।
सम्प्रभुता
सम्प्रभुता शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या स्वतन्त्र होना। भारत किसी भी विदेशी और आन्तरिक शक्ति के नियन्त्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र है। यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है।
समाजवादी
मुख्य लेख: समाजवाद
समाजवादी शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है। सरकार केवल कुछ लोगों के हाथों में धन जमा होने से रोकेगी तथा सभी नागरिकों को एक अच्छा जीवन स्तर प्रदान करने का प्रयत्न करेगी।
भारत ने एक मिश्रित फल का भाग है आर्थिक मॉडल को अपनाया है। सरकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई कानूनों जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, जमींदारी अधिनियम, समान वेतन अधिनियम और बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि बनाया है।
पन्थनिरपेक्ष
मुख्य लेख: पन्थनिरपेक्षता
पन्थनिरपेक्ष शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी पन्थों की समानता और पान्थिक सहिष्णुता सुनिश्चित करता है। भारत का कोई आधिकारिक पन्थ नहीं है। यह ना तो किसी पन्थ को बढ़ावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है। यह सभी पन्थों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहार करता है। हर व्यक्ति को अपने पसन्द के किसी भी पन्थ का उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी पान्थिक मान्यता कुछ भी हो कानून की दृष्टि में बराबर होते हैं। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई पान्थिक अनुदेश लागू नहीं होता।
लोकतान्त्रिक
मुख्य लेख: लोकतन्त्र
भारत एक स्वतन्त्र देश है, किसी भी स्थान से मत देने की स्वतन्त्रता, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है। स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती है। सभी चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का एक विधेयक लम्बित है। हालांकि इसकी क्रियान्वयन कैसे होगा, यह निश्चित नहीं हैं। भारत का निर्वाचन आयोग एक स्वतन्त्र संस्था है और यह स्वतन्त्र और निष्पक्ष निर्वाचन करने के लिए सदैव तत्पर है।
राजशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर जीवनभर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त किया जाता है, के विपरीत एक गणतान्त्रिक राष्ट्र का प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होता है। भारत के राष्ट्रपति पाँच वर्ष की अवधि के लिए एक चुनावी कॉलेज द्वारा चुने जाते हैं।
शक्ति विभाजन
यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों में विभाजित होती हैं। दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नहीं होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं।
संविधान की सर्वोच्चता
संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते हैं। केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद निम्न दिए गए हैं:
अनुच्छेद 54,55,73,162,241।
भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध।
अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची।
राज्यो का संसद में प्रतिनिधित्व।
संविधान में संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो में संसद अकेले संशोधन नहीं ला सकती है उसे राज्यों की सहमति भी चाहिए।
अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नहीं हैं:
लिखित संविधान अनिवार्य रूप से लिखित रूप में होगा क्योंकि उसमें शक्ति विभाजन का स्पष्ट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ में लिखित संविधान अवश्य होगा।
संविधान की कठोरता इसका अर्थ है संविधान संशोधन में राज्य केन्द्र दोनो भाग लेंगे।
न्यायालयों की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे।
विधि द्वारा स्थापित:
न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे।
न्यायालय संविधान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत में यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है।
ये पांच शर्ते किसी संविधान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य हैं। भारत में ये पांचों लक्षण संविधान में मौजूद हैं अतः यह संघात्मक है। परंतु भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएँ भी हैं:
भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएँ भी हैं
1. यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2. राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते है, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनो पर लागू होता है
3. भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता है
4. भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा। इस स्थिति में केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5. राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नहीं हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6. संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं [संघीय सरकार|संघीय], [राज्य सूची|राज्य], तथा [समवर्ती सूची|समवर्ती]। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष में है।
6.1 संघीय सूची में सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय हैं
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति में राज्य, केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते-
क1. अनु 249—राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2/3 बहुमत से] किंतु यह बन्धन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है
क2. अनु 250— राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है
क3. अनु 252—दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है [केवल संबंधित राज्यों पर]
क4. अनु 253--- अंतराष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है
क5. अनु 356—जब किसी राज्य में [राष्ट्रपति शासन] लागू होता है, उस स्थिति में संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है
7. अनुच्छेद 155 – राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है
8. अनु 360 – वित्तीय आपातकाल की दशा में राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा में केन्द्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है
9. प्रशासनिक निर्देश [अनु 256-257] -केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये, के बारे में निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिये जा सकते है, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है
10. अनु 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णतः: केन्द्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों में देते है राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है
11. एकीकृत न्यायपालिका
12. राज्यों की कार्यपालिक शक्तियाँ संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती है।
संविधान की प्रस्तावना
४२वें संशोधन से पूर्व भारत के संविधान की प्रस्तावना
मुख्य लेख: भारतीय संविधान की उद्देशिका
संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना अमेरिकी संविधान से प्रभावित तथा विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। प्रस्तावना के नाम से भारतीय संविधान का सार, अपेक्षाएँ, उद्देश्य उसका लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' - इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे खारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।
संविधान की प्रस्तावना:
हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा
इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
संविधान की प्रस्तावना 13 दिसम्बर 1946 को जवाहर लाल नेहरू द्वारा सविधान सभा में प्रस्तुत की गयी प्रस्तावना को आमुख भी कहते हैं।
के एम मुंशी ने प्रस्तावना को 'राजनीतिक कुण्डली' नाम दिया है
42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद, पंथनिरपेक्ष व अखण्डता शब्द जोड़े गए।
संविधान भाग 3 व 4 : नीति निर्देशक तत्त्व
मुख्य लेख: नीति निर्देशक तत्त्व
भाग 3 तथा 4 मिलकर 'संविधान की आत्मा तथा चेतना' कहलाते है क्योंकि किसी भी स्वतंत्र राष्ट्र के लिए मौलिक अधिकार तथा नीति-निर्देश देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नीति निर्देशक तत्त्व जनतांत्रिक संवैधानिक विकास के नवीनतम तत्त्व हैं। सर्वप्रथम ये आयरलैंड के संविधान में लागू किये गये थे। ये वे तत्त्व है जो संविधान के विकास के साथ ही विकसित हुए हैं। इन तत्वों का कार्य एक जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। भारतीय संविधान के इस भाग में नीति निर्देशक तत्वों का रूपाकार निश्चित किया गया है, मौलिक अधिकार तथा नीति निर्देशक तत्त्व में भेद बताया गया है और नीति निदेशक तत्वों के महत्त्व को समझाया गया है।
भाग 4 क : मूल कर्तव्य
मूल कर्तव्य, मूल सविधान में नहीं थे, 42 वें संविधान संशोधन में मूल कर्तव्य (10) जोड़े गये है। ये रूस से प्रेरित होकर जोड़े गये तथा संविधान के भाग 4(क) के अनुच्छेद 51 - अ में रखे गये हैं। वर्तमान में ये 11 हैं।11 वाँ मूल कर्तव्य 86 वें संविधान संशोधन में जोड़ा गया।
51 क. मूल कर्तव्य- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
(क) संविधान का पालन करे और उस के आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का आदर करे ;
(ख) स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उन का पालन करे;
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
(घ) देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
(ङ) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझे और उस का परिरक्षण करे;
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिस के अन्तर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उस का संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
(झ) सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
(ञ) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिस से राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा का अवसर प्रदान करे।
संशोधन
मुख्य लेख: भारतीय संविधान के संशोधन
भारतीय संविधान का संशोधन भारत के संविधान में परिवर्तन करने की प्रक्रिया है। एक संशोधन के प्रस्ताव की शुरुआत संसद में होती है जहाँ इसे एक बिल के रूप में पेश किया जाता है। भारतीय संविधान में अब तक 105 बार संशोधन किया जा चुका है जबकि संविधान संशोधन के लिए अब तक 127 बिल लाए जा चुके हैं।
इन्हें भी देखें
संघवाद (फेड्रलिज़्म)
महत्वपूर्ण अनुच्छेद
अनुच्छेद 1 :- भारत राज्यों का संघ होगा।
अनुच्छेद 2 :- नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना।
अनुच्छेद 3 :- राज्य का निर्माण तथा सीमाओं या नामों मे परिवर्तन।
अनुच्छेद 4 :- पहली अनुसूची व चौथी अनुसूची के संशोधन तथा दो और तीन के अधीन बनाई गई विधियां
अनुच्छेद 5 :- संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता
अनुच्छेद 6 :- भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता
अनुच्छेद 7 :-पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता।
अनुच्छेद 8 :- भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों का नागरिकता
अनुच्छेद 9 :- विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर नागरिकता का न
अनुच्छेद 10 :- नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
अनुच्छेद 11 :- संसद द्वारा नागरिकता के लिए कानून का विनियमन
अनुच्छेद 12 :- राज्य की परिभाषा
अनुच्छेद 13 :- मूल अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
अनुच्छेद 14 :- विधि के समक्ष समानता
अनुच्छेद 15 :- धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर रोक।
अनुच्छेद 16 :- लोक नियोजन में अवसर की समानता
अनुच्छेद 17 :- अस्पृश्यता का अन्त
अनुच्छेद 18 :- उपाधियों का अन्त
अनुच्छेद 19 :- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 19 क :- सूचना का अधिकार
अनुच्छेद 20 :- अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण
अनुच्छेद 21 :-प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण
अनुच्छेद 21 क :- 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार, निजता का अधिकार भी अनुच्छेद 21 के अंतर्गत ही आता है।
अनुच्छेद 22 :– कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से संरक्षण
अनुच्छेद 23 :- मानव के दुर्व्यापार, बेगारी एवं बलात श्रम पर प्रतिबंध
अनुच्छेद 24 :- 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों, खान या किसी खतरनाक उद्योग में कार्य नही कराया जा सकता है।
अनुच्छेद 25 :- धर्म का आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता
अनुच्छेद 26 :-धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतन्त्रता
अनुच्छेद 29 :- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
अनुच्छेद 30 :- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
अनुच्छेद 32 :-संवैधानिक उपचारों का अधिकार (संविधान की आत्मा)
अनुच्छेद 39 क :- सभी के लिए समान न्याय एवं निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था राज्य सरकार करेगी।
अनुच्छेद 40 :- ग्राम पंचायतों का संगठन
अनुच्छेद 44 :- समान नागरिक संहिता
अनुच्छेद 48 :- कृषि और पशुपालन संगठन
अनुच्छेद 48 क :- पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
अनुच्छेद 49 :- राष्ट्रीय स्मारक स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद 50 :- कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण
अनुच्छेद 51 :- अन्तरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
अनुच्छेद 51 क :- मूल कर्तव्य
अनुच्छेद 52 :- भारत का राष्ट्रपति
अनुच्छेद 53 :- संघ की कार्यपालिका शक्ति
अनुच्छेद 54 :- राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 55 :- राष्ट्रपति के निर्वाचन प्रणाली
अनुच्छेद 56 :- राष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 57 :- पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
अनुच्छेद 58 :- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताए
अनुच्छेद 60 :- राष्ट्रपति की शपथ
अनुच्छेद 61 :- राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
अनुच्छेद 63 :- भारत का उप-राष्ट्रपति
अनुच्छेद 64 :- उप-राष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
अनुच्छेद 65 :- राष्ट्रपति के पद की रिक्त पर उप-राष्ट्रपति के कार्य
अनुच्छेद 66 :- उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
अनुच्छेद 67 :- उप-राष्ट्रपति की पदावधि
अनुच्छेद 68 :- उप-राष्ट्रपति के पद की रिक्त पद भरने के लिए निर्वाचन
अनुच्छेद 69 :- उप-राष्ट्रपति द्वारा शपथ
अनुच्छेद 70 :- अन्य आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
अनुच्छेद 71. :- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धित विषय
अनुच्छेद 72 :-क्षमादान की शक्ति
अनुच्छेद 73 :- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
अनुच्छेद 74 :- राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मन्त्रिपरिषद
अनुच्छेद 75 :- मन्त्रियों के बारे में उपबन्ध
अनुच्छेद 76 :- भारत का महान्यायवादी
अनुच्छेद 77 :- भारत सरकार के कार्य का संचालन
अनुच्छेद 78 :- राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमन्त्री के कर्तव्य
अनुच्छेद 79 :- संसद् का गठन
अनुच्छेद 80 :- राज्य सभा की सरंचना
अनुच्छेद 81 :- लोकसभा की संरचना
अनुच्छेद 83 :- संसद् के सदनो की अवधि
अनुच्छेद 84 :-संसद् के सदस्यों के लिए अहर्ता
अनुच्छेद 85 :- संसद् का सत्र सत्रावसान और विघटन
अनुच्छेद 87 :- राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण


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